ये हैं अष्टविनायक, खुद प्रकट हुई थी इन 8 जगहों पर गणेश प्रतिमाएं - सौरभ कुमार श्रीवास्तव
गणेश हिंदुओं के आदिदेव हैं। किसी भी कार्य से पहले या पूजन में सबसे पहले उन्हें ही पूजा जाता है। गणेश एकमात्र ऐसे देवता हैं, जिनके चित्र सबसे अधिक अलग-अलग आकृतियों में देखने को मिलते हैं। वैसे तो भारत के हर कोने में गणेश जी के भक्तों और देवालयों की कमी नहीं। लेकिन महाराष्ट्र में गणेशोत्सव के दौरान उनके भक्तों में अलग ही उत्साह देखने को मिलता है।
मान्यता है कि महाराष्ट्र के 8 स्थानों में गणपति स्वयं विराजमान हैं। गणेश की स्वयंभू (अपने आप प्रकट हुई) प्रतिमा के कारण इन्हें अष्टविनायक कहा जाता है। पश्चिम महाराष्ट्र और कोंकण में बसे इन आठ तीर्थस्थानों का इतिहास पुराणों में भी वर्णित है। इन सभी तीर्थस्थानों को पेशवाओं के जमाने में पहचान मिली। यह कहा जाता है कि गणपति के इस अष्ट स्वरुप के दर्शन मात्र से कई जन्मों का पुण्य मिलता है।
धार्मिक महत्व के अनुसार यात्रा करने पर पुणे से करीब एक हजार किलोमीटर का सफर करना पड़ता है। शास्त्रों के अनुसार, इस यात्रा को मोरगांव से शुरू कर वहीं आकर समाप्त करना चाहिए। आमतौर पर यह यात्रा तीन दिन में पूरी होती है। ऐसा कहा जाता है कि अष्टविनायक की यात्रा के दौरान घर नहीं जाना चाहिए। ऐसी मान्यता है कि यात्रा शास्त्रों में बताए क्रम अनुसार ही करना चाहिए। इस यात्रा का महत्व भी 12 ज्योर्तिलिंगों जैसा है।
1. श्री मयूरेश्वर मंदिर
गणपतिजी का यह मंदिर पुणे से 80 किलोमीटर दूरी पर मोरगांव नाम की जगह पर है। मयूरेश्वर मंदिर के चारों कोनों में मीनारें हैं और लंबे पत्थरों की दीवारें हैं। यहां चार द्वार हैं। ये चारों दरवाजे चारों युग सतयुग, त्रेतायुग, द्वापरयुग और कलियुग के प्रतीक हैं। नंदी और मूषक (चूहा) दोनों ही मंदिर के रक्षक के रूप में रहते हैं। मंदिर में गणेशजी बैठी मुद्रा में विराजमान हैं तथा उनकी सूंड बाएं हाथ की ओर है, उनकी चार भुजाएं और तीन नेत्र हैं।
2. सिद्धिविनायक मंदिर
अष्ट विनायक में दूसरे गणेश हैं सिद्धिविनायक। यह मंदिर पुणे से करीब 200 किमी दूरी पर स्थित है। इस मंदिर के पास ही भीम नदी है। यह मंदिर पुणे के सबसे पुराने मंदिरों में से एक है, क्योंकि यह करीब 200 साल पुराना है। मान्यता है कि यही पर भगवान विष्णु ने सिद्धियां हासिल की थी। सिद्धिविनायक मंदिर एक पहाड़ की चोटी पर बना हुआ है। जिसका मुख्य द्वार उत्तर दिशा की ओर है। मंदिर की परिक्रमा के लिए पहाड़ी की यात्रा करनी होती है। यहां गणेशजी की मूर्ति 3 फीट ऊंची और ढाई फीट चौड़ी है। भगवान गणेश की सूंड सीधे हाथ की ओर है।
3. श्री बल्लालेश्वर मंदिर
अष्टविनायक में तीसरा मंदिर श्री बल्लालेश्वर मंदिर है। यह मंदिर मुंबई-पुणे हाइवे पर पाली से टोयन में और गोवा राजमार्ग पर नागोथाने से पहले 11 किलोमीटर दूर स्थित है। इस मंदिर का नाम गणेशजी के भक्त बल्लाल के नाम पर पड़ा है। माना जाता है कि प्राचीन काल में बल्लाल नामक एक भक्त को उसके घरवालों ने गणेशजी की प्रतिमा के साथ जंगल में फेंक दिया था। गंभीर हालत में बल्लाल गणेशजी के मंत्रों का जप कर रहा था। इस भक्ति से प्रसन्न होकर गणेशजी ने उसे दर्शन दिए। तब बल्लाल ने गणेशजी से आग्रह किया अब वे इसी स्थान पर निवास करें। गणपति ने आग्रह मान लिया। तभी से गणेश जी बल्लालेश्वर नाम से यहां विराजित हो गए।
4. श्री वरदविनायक
अष्ट विनायक में चौथे गणेश जी हैं श्री वरदविनायक। यह मंदिर महाराष्ट्र के रायगढ़ जिले के कोल्हापुर क्षेत्र में स्थित है। यहां एक सुन्दर पर्वतीय गांव है महाड़। इसी गांव में श्री वरदविनायक मंदिर। यहां प्रचलित मान्यता के अनुसार वरदविनायक भक्तों की सभी कामनों को पूरा करते है। इस मंदिर में नंददीप नाम का एक दीपक है जो कई वर्षों में प्रज्जवलित है।
5. चिंतामणि गणपति
अष्टविनायक में पांचवें स्थान में हैं चिंतामणि गणपति। यह मंदिर पुणे जिले के हवेली क्षेत्र में स्थित है। मंदिर के पास ही तीन नदियों भीम, मुला और मुथा का संगम है। इस मंदिर के बारें में मान्यता है कि यदि कोई भक्त का मन बहुत विचलित है और जीवन में दुख ही दुख प्राप्त हो रहे हैं तो इस मंदिर में आने पर उसकी सभी समस्याएं दूर हो जाएगी। माना जाता है कि भगवान ब्रम्हा ने अपने विचलित मन को वश में करने के लिए इसी स्थान पर तपस्या की थी।
6. श्री गिरजात्मज गणपति मंदिर
अष्टविनायक में छठें स्थान में है श्री गिरजात्मज। यह मंदिर पुणे-नासिक राजमार्ग पर पुणे से करीब 90 किलोमीटर दूरी पर स्थित है। क्षेत्र के नारायणगांव से इस मंदिर की दूरी 12 किलोमीटर है। गिरजात्मज का अर्थ है गिरिजा यानी माता पार्वती के पुत्र गणेश। यह मंदिर एक पहाड़ पर बौद्ध गुफाओं के स्थान पर बनाया गया है। यहां लेनयादरी पहाड़ पर 18 बौद्ध गुफाएं हैं और इनमें से 8वीं गुफा में गिरजात्मज विनायक मंदिर है। इन गुफाओं को गणेश गुफा भी कहा जाता है। यह पूरा मंदिर ही एक बड़े पत्थर को काटकर बनाया गया है।
7. विघ्नेश्वर गणपति मंदिर
अष्टविनायक में सातवें स्थान में है विघ्नेश्वर गणपति। यह मंदिर पुणे के ओझर जिले में जूनर क्षेत्र में स्थित है। यह पुणे-नासिक रोड पर नारायणगावं से जूनर या ओजर होकर करीब 85 किलोमीटर दूरी पर स्थित है। पौराणिक कथाओं के अनुसार विघनासुर नामक एक असुर था जो संतों को प्रताणित करता रहता था। भगवान गणेश ने इसी क्षेत्र में उस असुर का वध किया और सभी को कष्टों से मुक्ति दिलवाई थी। तभी से यह मंदिर विघ्नेश्वर, विघ्नहर्ता और विघ्नहार के रूप में जाना जाता है।
8. महागणपति मंदिर
अष्टविनायक मंदिर के आठवें स्थान में हैं महागणपति। यह मंदिर पुणे के रांजणगांव में स्थित है। यह पुणे-अहमदनगर राजमार्ग पर 50 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। इस मंदिर का इतिहास 9-10वीं सदी के बीच माना जाता है। मंदिर का प्रवेश द्वार पूर्व दिशा की ओर है जो कि बहुत विशाल और सुन्दर है। यहां की गणेशजी प्रतिमा अद्भुत है। प्रचलित मान्यता के अनुसार मंदिर की मूल मूर्ति तहखाने में छिपी हुई है। पुराने समय में जब विदेशियों ने यहां आक्रमण किया था तो उनसे मूर्ति बचाने के लिए उसे तहखाने में छिपा दिया गया था।
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